हिंदी के समाचार प्रस्तोता और लेखक मराठी और बांग्ला के लेखकों-पत्रकारों से क्यों नहीं सीखते?
हम हिंदीभाषी और हिंदी के पत्रकार न केवल अंग्रेजी के, बल्कि उर्दू, फारसी और अन्य विदेशी भाषाओं के शब्दों-मुहावरों का उपयोग करने को विद्वता का परिचायक मानने लगे हैं और देसी शब्दों-कहावतों का उपयोग करने में कतराते हैं. हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं, धीरे-धीरे वही लोग पढ़ते-लिखते-बोलते आत्मसात करते जाते हैं और विकृति की जड़ें और गहरी होती जाती हैं.
बॉलीवुड की प्रदूषित हिन्दी पर नित्यानंद मिश्र का एक बहुत ही अच्छा आख्यान यूट्यूब पर उपलब्ध है. इस आख्यान में उन्होंने दैनिक जागरण में प्रकाशित डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र के ‘चिंतनीय है फिल्म-प्रदूषित हिंदी’ शीर्षक वाले आलेख का संदर्भ देते हुए यह दर्शाया है कि कैसे हिंदीभाषियों को अधकचरा ज्ञान वाले तथाकथित प्रसिद्ध और नामचीन गीतकारों ने धीरे-धीरे भाषायी विकृति और सांस्कृतिक प्रदूषण को चाहे-अनचाहे स्वीकार करने पर विवश किया और कैसे इससे धीरे-धीरे हमारी भाषा और सोच दोनों में अवनति आने लगी.
श्री मिश्र का यह वीडियो, और क्यों न इसे चलचित्र कहें, बॉलीवुड के लिए भले ही आँखें खोलनेवाला न हो, पर हिंदी के पत्रकारों के लिए काफी शिक्षाप्रद है.
हिंदी के हम पत्रकार न केवल अंग्रेजी के, बल्कि उर्दू, फारसी और अन्य विदेशी भाषाओं के शब्दों-मुहावरों का उपयोग करने को विद्वता का परिचायक मानने लगे हैं और देसी शब्दों-कहावतों का उपयोग करने में कतराते हैं. हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं, धीरे-धीरे वही लोग पढ़ते-लिखते-बोलते आत्मसात करते जाते हैं और विकृति की जड़ें और गहरी होती जाती हैं.
हालाँकि यह प्रवृत्ति कुछ सीमा तक बांग्ला व मराठी में भी पायी जाती है, लेकिन कुल मिलाकर अन्य क्षेत्रीय भाषा-भाषियों ने अपनी मौलिक संस्कृति और भाषा को अक्षुण्ण रखने में सफलता पायी है.
भारत में जन्मी सभी भाषाएँ संस्कृत से निकली और उसी पर आधारित हैं. इसीलिए शुद्ध देसी हिंदी बोलने पर एक बांग्लाभाषी बड़ी आसानी से हमारे भाव समझ लेता है.
इसी चलचित्र के कमेंट्स खंड में @bla3427 नाम के एक व्यक्ति ने टिप्पणी की है: “As a Bengali, I can comprehend Hindi in its purest form without having to learn it; but, when Urdu, Arbi, and Farsi are mixed in with Hindi, the language becomes alien to us.”
इसी तरह @pritamroy8872 ने बांग्ला में टिप्पणी की है – “একমাত্র এই সংস্কৃতবহুল হিন্দিটিই আমাদের জন্য বোধগম্য হলো। আপনাকে ধন্যবাদ। সংস্কৃত ভাষাকে বাঁচাতে হবে। তবেই বাকি ভারতীয় ভাষাগুলি স্ব-স্থানে থাকবে।”
उन्होंने लिखा है – “एकमात्र एई संस्कृतबहुल हिंदीटीई आमादेर जन्नो बोधगम्य होलो. आपनाके धन्यवाद. संस्कृत भाषाके बांचाते होबे. तोबेई बाकि भारोतीयो भाषागुलि स्व-स्थाने थाकबे.”
इस चलचित्र पर सैकड़ों टिप्पणियाँ की जा चुकी हैं और उन्हें पढ़ने मात्र से यह पता चल जाता है कि प्रायः सबके मन में ऐसे विचार आते रहे हैं, केवल उन्हें अवसर नहीं मिलता इन्हें व्यक्त करने का.
इसी चलचित्र से मिलता-जुलता एक और चलचित्र है, जिसमें उन्होंने दर्शाया है कि क्रिकेट के नाम पर कैसे हिंदी समाचार लेखक एक प्रदूषित खिचड़ी परोस रहे हैं. उन्होंने मराठी समाचारपत्रों से तुलना करते हुए यह दर्शाया है कि कैसे हिंदी में भी देसी शब्दों का प्रयोग कर रोचक ढंग से समाचार प्रस्तुत किये जा सकते हैं, जैसे कि बांग्ला, मराठी, कन्नड़ या अन्य देसी भाषाओं में किये जा रहे हैं.
सच, समाचार पत्रों व समाचार लेखकों पर महती दायित्व है इस भाषाई प्रदूषण से लड़ने और इसे कम करने का.