जमशेदपुर ; दक्षिण भारत के प्रख्यात संत स्वामी भूमानंद तीर्थ जी महाराज व मां गुरूप्रिया का 21 फरवरी मंगलवार को जमशेदपुर आगमन हो रहा है. उनके प्रधान आचार्यत्व में 57 वें जमशेदपुर वार्षिक ज्ञान यज्ञ का आयोजन सीएच एरिया (नॉर्थ वेस्ट) स्थित आत्मीय वैभव विकास केंद्र( सीआईआरडी) में 22 फरवरी से 9 मार्च तक होगा, इसके तहत आध्यात्मिक उत्थान से जुड़े कई तरह के कार्यक्रम होंगे.
शहर में हर साल यह ज्ञान यज्ञ होता रहा है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसमें व्यतिक्रम हो गया था. स्वामीजी के श्रद्धालुओं के लिए अब यह आयोजन हो रहा है.
ज्ञान यज्ञ की शुरूआत 22 फरवरी को शाम 7 से 8 बजे तक दर्शन और सत्संग से होगा जिसमें स्वामीजी मानव जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के उपाय बताएंगे.
24 फरवरी को शाम 7 बजे से 8.30 बजे तक गुरू अर्चना और स्वामीजी के आशीर्वचन का कार्यक्रम होगा.
प्रवचन
स्वामी भूमानंद तीर्थ के प्रवचन की शुरूआत 27 फरवरी से शाम 7 बजे से 8 बजे तक होगी और यह सिलसिला 4 मार्च तक लगातार
चलता रहेगा. इसके बाद 28 फरवरी से 2 मार्च तक मां गुरूप्रिया का साधना सत्संग (हिंदी में) रोजाना सुबह 10.30 से 11.45 बजे तक होगा. 6 से 8 मार्च तक मां गुरूप्रिया का दैनिक जीवन में भगवद्गीता पर अंग्रेजी में उद्बोधन होगा. 9 मार्च को शाम 7 बजे से 8.15 बजे तक समापन सत्संग होगा.
अन्य कार्यक्रम
स्कूली बच्चों को उत्प्रेरणा
ज्ञान यज्ञ में बच्चों के लिए भी कार्यक्रम रखा गया है. 25 फरवरी को शाम 4 बजे से 5 बजे तक केंद्र में बच्चों के लिए कार्यक्रम होगा जिसमें स्वामीजी और मां गुरूप्रिया बच्चों को संबोधित करेंगे और बच्चे अपनी शंकाओं का समाधान भी संवाद सत्र में कर सकेंगे.
दान सत्र
केंद्र में 26 फरवरी को सुबह 9.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक गरीबों को चादर और कंबल का वितरण स्वामीजी और उनके शिष्य अपने हाथों से करेंगे.
हाता में दान सत्र
आदिवासी बहुल हाता में केंद्र की ओर से ग्रामवासियों को चादर और कंबल के वितरण का कार्यक्रम भी रखा गया है. यह आयोजन 25 मार्च को अपराहन 1 से शाम 6 बजे तक श्रद्धालु हैं. ज्ञान यज्ञ से जुड़े सारे चलेगा.
उल्लेखनीय है कि स्वामी भूमानंद तीर्थ के अधिकांश कार्यक्रम आत्मीय वैभव विकास केंद्र में होंगे, हालांकि कुछ कार्यक्रम दूसरी जगह पर भी होंगे.
जानिए स्वामी भूमानंद तीर्थ के
स्वामी भूमानंद तीर्थ नारायण आश्रम तपोवनम और आत्मीय वैभव विकास केंद्र के संस्थापक हैं. वे आदि शंकराचार्य की तीर्थ परंपरा से जुड़े हैं. पश्चिम बंगाल के दक्षिण खंड के बाबा गंगाधर परमहंस से उन्होंने ब्रह्मविद्या की दीक्षा ली. कुछ सालों की साधना के बाद 23 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास ले लिया. स्वामीजी क जन्म एक ब्राह्मण परिवार में केरल के त्रिशूर जिले के पारालिक्कड़ गांव में हुआ जो आदि शंकराचार्य की जन्मस्थली कालडी के निकट है, उनकी माता धार्मिक स्वभाव की गृहिणी थी जिन्होंने अपने बच्चों को धार्मिक संस्कार दिए. संस्कृत के कई श्लोक उन्हें माता ने सिखाए जो अनपढ़ भले थी, लेकिन धार्मिक संस्कार उनमें कूट-कूटकर भरे थे. युवा अवस्था में ही स्वामीजी मंदिर जाते थे और सूर्य नमस्कार करते थे. उनकी मुलाकात जब गंगाधर परमहंस से हुई तो उनकी जीवन धारा ही बदल गई.