तेलंगाना से एक और दिल दहलाने वाला समाचार आ रहा है। इस घटना में भी मुस्लिम लड़के और हिन्दू लड़की की लिव इन में रहने की कहानी है। परन्तु इस कहानी में हिन्दू लड़की दिव्या पहले ही एक बेटी को जन्म देकर मर चुकी है। अब चूंकि दिव्या का लिव इन पार्टनर मोहम्मद शाहबाज़ अकेला कैसे उस बच्ची को पालता तो उसने उस बच्ची को झाड़ियों में फेंक दिया।
Breaking News: The heartbreaking incident took place in Ibrahimpatnam Mandal, NTR district (AP) where a father named Mohammad Shahbaz threw his two-day-old child in the ‘Thorny Bushes’ after the death of the mother
Md Shahbaz & Divya was living in live-in for last few year
+ pic.twitter.com/hONFlxktpe— Ashwini Shrivastava (@AshwiniSahaya) December 28, 2022
यह कहानी लिव इन संबंधों के उस अधूरेपन की कहानी है, जिसके विषय में अभी तक किसी ने नहीं सोचा होगा। लिव इन ठीक है, अंतरधार्मिक लिव-इन क्रान्ति है, ऐसा विमर्श बनाया जा रहा है, मगर उस क्रान्ति से पैदा हुए बच्चे? और वह भी तब जब माँ का देहांत हो जाए! यह एक ऐसा प्रश्न या पहलू है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया होगा! यह एक ऐसा पहलू है, जिसे किसी ने देखा नहीं होगा, किसी ने नहीं बुना होगा!
यह कहानी है मछलीपतनम, जिला कृष्णा के शाहबाज की जो गुडिवाडा की दिव्या के साथ कुछ वर्षों से हैदराबाद में लिव इन में रह रहा था। स्वास्थ्य बीमा कम्पनी में काम करने वाले शाहबाज और दिव्या एक दूसरे से प्यार करते थे। चूंकि उनके घरवाले उनकी शादी के लिए तैयार नहीं हुए तो वह दोनों एक साथ रहने लगे।
इसी दौरान दिव्या गर्भवती हुई और उसने २३ दिसंबर २०२२ को एक बच्ची को हैदराबाद के एसआर नगर में ईएसआई अस्पताल में जन्म दिया।
बच्ची को जन्म देने के बाद दिव्या की तबियत बिगड़ने लगी और उसे ओस्मानिया जनरल अस्पताल में ले जाया गया। हालांकि वह उसी रात इलाज के दौरान चल बसी!
इसके बाद जब शाहबाज उसके शव और नवजात को अपने पैतृक गाँव ले जा रहा था, तो जब उसने देखा कि इब्राहीमपटनम में दोनबंदा में एम्ब्युलेंस के ड्राइवर ने जब कुछ देर आराम के लिए और झपकी मारने के लिए गाड़ी रोकी तो शाहबाज ने अपनी नवजात को झाड़ियों में फेंक दिया और उसके बाद एम्ब्युलेंस गुडिवाडा के लिए चली गयी।
उसके बाद जब उस बच्ची के रोने की आवाज एक स्थानीय महिला कानों में पड़ी तो उसने जब खोजा तो उन्हें यह बच्ची दिखाई दी। फिर उसे वह बच्ची खून से लथपथ दिखाई दी। उन्होंने उस बच्ची को एक आशा कार्यकर्त्ता को सौंप दिया, जिसने गाँववालों को और पुलिस को इस घटना के विषय में सूचित किया।
पुलिस ने फिर उसके बाद मामला दर्ज किया और फिर इस घटना की जांच शुरू की। उन्होंने हाईवे पर वाहनों पर नजर रखनी शुरू की और फिर उन्होंने देखा कि एक एम्ब्युलेंस गुडिवाडा से हैदराबाद लौट रही है। उन्होंने उसका पीछा किया और फिर उसके ड्राइवर को हिरासत में ले लिया।
पूछताछ में पुलिस को सारी कहानी पता चली और फिर उन्होंने शाहबाज को हिरासत में ले लिया।
यह कहानी आजादी के उस दुष्परिणाम की ओर संकेत करती है, जिस दुष्परिणाम को समाजशास्त्री भी नहीं देख पा रहे हैं। जो लोग दिन रात प्यार की आजादी या फिर किसी के साथ रहने की आजादी की बात करते हैं, क्या वह सब ऐसे बच्चों के भाग्य को लेकर कुछ भी चिंतित हैं?
सर्कल इन्स्पेक्टर ने इस घटना के विषय में बताते हुए कहा कि शाहबाज ने बच्ची को झाड़ियों में फेंक दिया था।
“जैसे ही हमें कुछ स्थानीय लोगों द्वारा सूचित किया गया, हमने बच्चे को बचा लिया। दिव्या और मोहम्मद शाहबाज हैदराबाद में साथ रह रहे थे। दिव्या ने मरने से पहले एक बच्ची को जन्म दिया। हमने स्थानीय लोगों की मदद से शाहबाज को पकड़ लिया और मामले की जांच की जा रही है। हम उसे जल्द ही अपनी हिरासत में लेने की उम्मीद करते हैं!”
परन्तु इस घटना ने फिर से लिव इन, प्यार की आजादी, रहने की आजादी, मनपसन्द आदमी से प्यार करने एवं उसके साथ रहने की आजादी, विवाह का विरोध आदि तमाम हिन्दू विरोधी अवधारणाओं पर प्रश्न उठा दिए हैं। विवाह का अर्थ सामाजिक स्वीकार्यता होती है। यदि विवाह किया होता तो बच्ची को इस प्रकार झाड़ियों में नहीं फेंकना पड़ता और न ही दिव्या के ऐसे समय में सहज वह अकेली होती।
विवाह एवं संतानोत्पत्ति, गर्भधारण से लेकर प्रसव के बीच कई प्रकार के संस्कार होते हैं, जो दंपत्ति को उन दोनों के परिवारों से जोड़े रखते हैं एवं अजन्मे बच्चे से ही परिवार को प्रेम हो जाता है। मगर जब लड़का और लड़की किसी न किसी कारणवश या कथित आजादी के चलते एक ऐसे सम्बन्ध में जाने का निर्णय लेते हैं, जिसे सामाजिक स्वीकार्यता नहीं हो तो ऐसे में इन संबंधों से उत्पन्न संतानों का क्या होगा, इस पर सब मौन हैं!
जबकि बात अब इस पर होनी ही चाहिए!
(यह स्टोरी हिंदू पोस्ट की है और यहाँ साभार पुनर्प्रकाशित की जा रही है.)