ईरान में एक नया चौंकाने वाला तथ्य उजागर हुआ है। यह तथ्य इसलिए बहुत ही हैरान करने वाला है क्योंकि इसकी चर्चा ही उन लोगों के बीच नहीं है, जो हर तरह की आजादी के पक्षधर हैं। जिन्हें यह लगता है कि पूरे विश्व में कहीं भी अत्याचार हो रहा है तो वह मानवता के प्रति अत्याचार है और वह हिन्दुओं को किसी भी घटना के लिए दोषी ठहराने के लिए इतनी व्याकुल होती हैं कि कुछ भी कोण निकाल लेती हैं।
फिर भी वह ईरान, अफगानिस्तान में हो रही घटनाओं पर मौन हैं ही, मगर भारत में भी ऐसा मामला आया है, जो दिल दहला देने वाला है, उसमें भी मौन हैं। पहले ईरान को देखते हैं। ईरान में महसा अमीनी की मृत्यु के बाद से विरोध प्रदर्शन आरम्भ हुए थे,। जिनमें ईरान की सरकार की दमनात्मक नीतियों का विरोध था। अब समाचार आ रहे हैं कि वहां पर इस वर्ष 500 से अधिक लोगों को सजाए मौत दी जा चुकी है। यह आंकड़ा पिछले कई वर्षों में सबसे अधिक है।
नार्वे आधारित ईरान ह्युमंस राइट्स अर्थात आईएचआर के निदेशक महमूद अमीरे मोघहद्द्म के अनुसार इन सभी लोगों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के ही सजा-ए-मौत दे दी गई है। साथ ही इन लोगों को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया।
वहीं अब ईरान सरकार ने आन्दोलनकारियों को भी मौत की सजा देनी शुरू कर दी है। पिछले दो दिनों में दो युवाओं को इसी बात को लेकर मृत्युदंड दिया जा चुका है, क्योंकि उन्होंने आजादी मांगी थी। परन्तु आजादी कब इतनी सस्ती रही है।
मोहसिन शेकरी को तो सही से अंतिम संस्कार करने की भी अनुमति नहीं दी गयी।
ऐसा नहीं है कि पुरुषों को ही मौत की सजा दी जा रही है। महिलाओं को भी और जिनके छोटे छोटे बच्चे हैं, उन्हें भी मौत की सजा दी जा रही है। फाहीमे करीमी, जो पेशे से वॉलीबॉल कोच हैं और तीन छोटे छोटे बच्चों की माँ भी हैं। उन्हें भी मौत की सजा केवल इसलिए दी जा रही है क्योंकि उन्होंने आन्दोलन में हिस्सा लिया था
एक्टिविस्ट मसीह अलीनेजाद ने एक वीडियो साझा करते हुए लिखा कि, इसे अंत तक देखें, यह एक युद्ध है। इस्लामी शासन अब देश के साथ युद्ध पर है।
परन्तु वह लोग जो भारत में देश तोड़ने वाली बातों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में लाते हुए भारत तेरे टुकड़े होंगे या फिर ब्राह्मण भारत छोड़ो जैसे नारों को उचित ठहराते हैं, वह भी बिलकुल इन बातों पर मौन हैं। यह मौन इतना घातक है कि इसका अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।
ऐसा नहीं कि ईरान दूर है तो वह मौन है। वह पड़ोसी अफगानिस्तान में भी महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर मौन हैं। अफगानिस्तान में जिस तालिबान के आने से और इस आहट से कि वह भारतीय जनता पार्टी की सरकार को गिरा सकते हैं, उन्होंने तालिबान की यह कहते हुए प्रशंसा आरम्भ कर दी थी कि कम से कम वह प्रेस कोफेरेंस तो कर रहे हैं।
मगर अब जब वहां पर महिलाओं को छोटी छोटी बातों पर कोड़े मारे जा रहे हैं, तो वह मौन हैं। वह लोग उन तमाम वीडियोज पर मौन हैं, जिनमें महिलाओं की मूलभूत आजादी पर प्रहार किए जा रहे हैं
This is the Taliban brutally lashing a woman in Takhar province for going to the shop without a male guardian.
The women of Afghanistan are experiencing hell on earth under Taliban regime. We mustn’t turn a blind eye.
pic.twitter.com/gl0MQeBWXg— Shabnam Nasimi (@NasimiShabnam) December 1, 2022
इतना ही नहीं, रुखसाना को एक गड्ढे में खड़ा करके पत्थर मार-मार कर हत्या कर दी और वह भी इसलिए क्योंकि उसने तालिबान द्वारा जबरन निकाह से इंकार कर दिया था। इतना ही नहीं पश्चिमी अफगानिस्तान के फराह प्रांत में मस्जिद के मौलानाओं ने आम जनता को बुलाया था, कि वह आएं और एक महिला को ऐसे मरते हुए देखें
मगर तालिबान द्वारा अमेरिका को भगाए जाने को लेकर खुशी से उछलने वाली फेमिनिस्ट इतनी जघन्य घटना पर मौन हैं। वह क्यों मौन हैं, नहीं पता। खैर अफगानिस्तान की घटना शायद उन्हें नहीं पता लग पाई होगी। तो हम और पास आते हैं और देखते हैं कि हर छोटी घटना पर हिन्दुओं को गाली देने वाली ये गुलाम औरतें क्या सोचती हैं, जब अमरोहा में अनवर सुबह 4 बजे सेक्स करता है और फिर निढाल होने के कुछ देर बाद रुखसार से फिर सेक्स की मांग करता है और जब रुखसार इंकार करती है तो वह गला दबाकर हत्या कर देता है।
सुबह के 4 बजे अनवर ने सेक्स किया। निढाल होने के कुछ मिनट बाद फिर से सेक्स करना चाहता था। रुखसार ने मना कर दिया तो हत्या ही कर दी।
कहानी नहीं है, अमरोहा का मर्डर केस है। ऐसे मामलों में ‘माय बॉडी माय चॉइस’ चैपियंस नहीं बोलेंगी। वे बस ये बताएंगी कि 90% औरत को चरमसुख नहीं मिलता।— अ स अजीत (@JhaAjitk) December 9, 2022
यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि ब्रा पहनने तक को हिन्दू पुरुषों का अत्याचार या फिर ब्राह्मणवादी अत्याचार बताने वाली फेमिनिस्ट ईरान से लेकर अमरोहा तक उन मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर मौन हैं, जो यूनिवर्सल अर्थात वैश्विक बहनापे के अंतर्गत आती हैं।
वह हर उस महिला के लिए बात करना चाहती हैं जो पीड़ित हैं, मगर किससे पीड़ित? वह हर उस औरत के लिए खड़ी होना चाहती हैं, जिसका शोषण हो रहा है, मगर वह इस बात पर मौन रहती हैं कि आखिर शोषण किसके हाथों हो रहा है!
शोषण यदि मुस्लिम या ईसाई या फिर सिख, या फिर कथित दलित के हाथों हो रहा है, जहां पर उनका एजेंडा अनुकूल स्थान नहीं पा पा रहा है अर्थात हिन्दू धर्म या ब्राह्मणों, ठाकुरों आदि को कोसने का, तो वह उसी प्रकार मौन धारण कर लेती हैं जैसा ईरान से लेकर अमरोहा तक की घटनाओं पर धारण करे बैठी हैं।
इन तमाम घटनाओं पर मौन से यह पता चलता है कि यह फेमिनिज्म और कुछ नहीं बल्कि केवल और केवल हिन्दू विरोध का एक ऐसा उपकरण है, जिसे हिन्दू धर्म को अपमानित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यदि महिलाओं से इसका तनिक भी सम्बन्ध होता तो कम से कम अमरोहा जैसी घटनाओं पर तो यह गुलाम फेमिनिस्ट औरतें बोलतीं!
(यह स्टोरी हिंदू पोस्ट की है और यहाँ साभार पुनर्प्रकाशित की जा रही है.)