कथित रूप से लीक से हटकर फिल्मों में काम करने वाले आयुष्मान खुराना इन दिनों भारतीयों से गुस्सा हैं। उन्हें भारत पर गुस्सा आ रहा है क्योंकि उनकी फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं। परन्तु यही भारत जब फ़िल्में हिट कराता है और उनके दिमागों को आसमान पर बैठाता है, तब किसी भी अभिनेता को यह नहीं लगता कि भारत या भारतीयों का धन्यवाद व्यक्त कर दें? जिन्हें भारत या भारतीय फ़िल्में हिट कराकर हर प्रकार की अय्याशी का प्रबंध कराते हैं, वही आगे जाकर उन्हीं भारतीयों को गाली देते हैं, जिन्होनें उन्हें नाम, धन, ख्याति आदि सभी दी होती है।
परन्तु आयुष्मान खुराना गुस्सा क्यों हैं?
आयुष्मान खुराना के क्रोध का कारण क्या है? आयुष्मान खुराना ने पूरे भारत को होमोफोबिक क्यों कहा? आयुष्मान खुराना को शिकायत है कि उनकी फिल्म “चंडीगढ़ करे आशिकी” सुपर फ्लॉप हुई थी, इसे लेकर उन्हें बहुत गुस्सा है और उन्होंने कहा कि पूरा भारत होमोफोबिक है। मगर आयुष्मान खुराना जब यह कहते हैं, तो वह भूल जाते हैं कि उनकी कई ऐसी फ़िल्में सुपरहिट हुई हैं, जिनमें कंटेंट साधारण नहीं था।
स्पर्म डोनेट करने के विषय को लेकर उनकी पहली फिल्म विकी डोनर ही ऐसी थी जिसने छप्पर फाड़कर कमाई की थी। इतना ही नहीं उनकी फिल्म शुभ मंगल सावधान भी ऐसी फिल्म थी, जो समलैंगिक सम्बन्धों पर आधारित थी, और जिसे लोगों ने पसंद किया था। उसने भी कमाई की थी।
आयुष्मान खुराना यह भूल जाते हैं कि लोग इसलिए फिल्म देखने आते हैं जिससे उन्हें मनोरंजन मिल सके। वह इसलिए फ़िल्में देखने आते हैं जिससे वह अपने दिमाग को तरोताजा कर सकें। परन्तु वह इसलिए फ़िल्में देखने नहीं आते कि वह गंदगी अपने दिमाग में भर सकें। हालांकि आयुष्मान खुराना अपनी पहले की फिल्मों में पर्याप्त गंदगी दिखा चुके हैं।
वह देख ही नहीं पा रहे हैं कि जनता अब एजेंडा वाली फ़िल्में नहीं देखना चाहती है, वह विकृति नहीं देखना चाहती है। जिस विकृति का प्रतिशत समाज में बहुत ही कम है, उसे सामान्यीकृत क्यों किया जा रहा है? एलजीबीटी की समस्या इतनी भी व्यापक नहीं है कि पूरे समाज के सामान्य लोगों को भी उनकी लैंगिक एवं यौनिक पहचान को लेकर भ्रमित कर दिया जाए।
आयुष्मान खुराना की जब ऐसी दो फिल्मों को उसी जनता ने सुपरहिट कराया तो उन्होंने यह नहीं कहा कि भारत ऐसी फिल्मों को भी स्वीकार कर रहा है, जो सहज स्वीकार्य नहीं हैं। होमोफोबिक का अर्थ होता है समलैंगिक लोगों के प्रति घृणा का भाव लिए रहना। परन्तु क्या भारत वास्तव में ऐसा है? भारत को गाली क्यों देना है?
भारत का विरोध क्यों करना है? क्या यह जरूरी है कि बॉलीवुड जो भी कचड़ा दे रहा है, लोग उसे देखें ही देखें? क्या यह आवश्यक है कि लोग हर विकृति को देखें ही देखें? यह अनिवार्यता क्यों? समाज में कथित जागरूकता लाने के लिए और वह भी उन विषयों पर जिनसे पूरे के पूरे समाज के विकृत होने की आशंका है, फ़िल्में क्यों बनाई जा रही हैं? और यदि बनाई जा रही हैं तो उसमें वास्तविक जीवन की पीड़ा होनी चाहिए, कृत्रिम पीड़ा कैसे हो सकती है?
एलजीबीटी समूह को प्रमोट करने के लिए एक बहुत बड़ी लॉबी लगी हुई है, जिसका विरोध पश्चिम में आरम्भ हो ही गया है। यह कितना बड़ा षड्यंत्र है कि आम लोगों को उनकी लैंगिक एवं यौनिक पहचान के विषय में इतना भ्रमित कर दिया जाए कि वह समझ ही न पाएं कि वह महिला हैं या पुरुष और फिर उसे इस प्रकार की फालतू फिल्मों के माध्यम से ग्लैमराइज़ करना, एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है।
यह हिन्दू धर्म के साथ किया जा रहा एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है, कि समाज को अब विमर्श के स्तर पर पूरी तरह से विकृत कर दिया जाए। लड़की और लड़कों को उनकी यौनिक और लैंगिक पहचान के प्रति पूर्णतया भ्रमित कर दिया जाए कि वह और कुछ सोच ही न सके। समाज ऐसे ही मिटता है, जब उसकी पहचान के साथ खेल किया जाता है। और हर प्रकार की पहचान को विकृत कर दिया जाए। फिर चाहे वर्णगत पहचान हो या फिर लैंगिक, यौनिक पहचान।
एक यूजर ने सही ही लिखा कि लोग ठीक ही इन फिल्मों का बहिष्कार कर रहे हैं क्योंकि बेकार फिल्मों के फ्लॉप होने पर आप पूरे देश को होमोफोबिक कह रहे हैं:
मूल निवासी, ब्राह्मणवाद आदि शब्दों के खेल के बाद हिन्दुओं की पहचान को विकृत करने का एक नया खेल यह आरम्भ हुआ है। यह कथित ह्यूमेनिटी के नाम पर खेला जाने वाला खेल है, जिसमें यह प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है कि कथित हाशिये पर पड़े समाज के प्रति इनमें कितना प्यार है। परन्तु भारत को होमोफोबिक कहने वाले आयुष्मान खुराना एलजीबीटी समुदाय के उन लोगों की मृत्यु पर तनिक भी मुंह नहीं खोलते हैं, जिन्हें लगभग रोज ही हिंसा का सामना इस्लामिक देशों में करना पड़ रहा है।
हाल ही में दो महिलाओं को बंगाल में एक ऐसी हिंसा का सामना करना पड़ा था, जो पहचान के इस द्वन्द से होकर गुजर रही थीं। दो महिलाओं के निजी अंगों को इसलिए जला दिया गया, क्योंकि यह संदेह था कि वह समलैंगिक हैं।
यह कुकृत्य करने वाले लोग थे साहेब शेख, कदम मोल्ला, समजेर एसके। इन्होनें पहले उन महिलाओं के निजी अंगों को जलाया और फिर उनके साथ बलात्कार करने का प्रयास किया।
Know these 3 criminals : 1- Saheb Seikh 2 – Kadam Mollah 3 – Samjer Sk from Murshidabad district. They suspected 2 women of being lesbian & thus assaulted them,burnt their private areas with hot iron rod & attempted to rape them. 1 of them has been arrested. 2 are still at large. pic.twitter.com/0dcHOmTSAc
— Tamal Saha (@Tamal0401) November 9, 2022
परन्तु कथित रूप से इन हाशिये पर पड़े लोगों के लिए फ़िल्में बनाकर पैसा कमाने वाले आयुष्मान खुराना इन घटनाओं के विरोध में जमीन पर नहीं उतरते! वह यह नहीं कहते कि गलत हो रहा है, वह यह नहीं कहते कि इन औरतों के साथ गलत हो रहा है। बंगाल में होमोफोबिक लोगों ने यह कर दिया है!
परन्तु उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि उनकी कथित क्रांतिकारी फिल्म इसलिए फ्लॉप हो गयी कि लोग होमोफोबिक हैं?
प्रिय आयुष्मान जी, क्रांतिकारी ऐसे नहीं होती है कि आप कथित रूप से विकृति वाली फ़िल्में बनाते रहें और यह अपेक्षा करते रहें कि आम जनता इसे पसंद करें! और जब लोग आपकी विकृति को देखने से इंकार कर दे तो आप पूरे भारत को होमोफोबिक कहें? एक यूजर ने सही ही कहा कि
अनुराग कश्यप की फ़िल्में इसलिए नहीं चलतीं कि लोगों के पास पैसा नहीं है और आयुष्मान खराना की फ़िल्में इसलिए नहीं चलतीं क्योंकि भारत होमोफोबिक है!
Anurag Kashyap’s films don’t work because Indians don’t have any money
Ayushmann’s movies don’t work because Indians are homophobic.
Anything else? 🤣🤣🤣 @ayushmannk
Jhaatu jaisi movie laate ho jisme jhaat barabar acting karte ho aur fir desh ko gaali dete ho. pic.twitter.com/rMYnflPNjf
— Chinmay Rane (@cvrane) November 18, 2022
पूरे देश को गाली देने से पहले आपको अपनी विकृत फिल्मों पर एक दृष्टि डाल लेनी चाहिए थी कि क्या वह वास्तव में समस्या का समाधान दे रही है या नहीं। या फिर आपने पहचान के द्वंद को बेहद हल्के और छिछले तरीके से प्रस्तुत कर दिया है।
अच्छी स्क्रिप्ट चुनिए आयुष्मान जी, न कि सस्ती, विकृत स्क्रिप्ट और क्रांति के नाम पर गंदगी परोसते रहें
(यह स्टोरी हिंदू पोस्ट की है और यहाँ साभार पुनर्प्रकाशित की जा रही है.)