विवाह का विरोध करती स्त्रीवादी कविताएँ: जिन्हें साहित्य के नाम पर पढ़ा एवं पढ़ाया जाता है

हिन्दू धर्म में विवाह को सबसे पवित्र संस्कार माना गया है क्योंकि वर्णाश्रम में गृहस्थाश्रम को तीनों ही आश्रमों से श्रेष्ठ बताया गया है।  गृहस्थ आश्रम का आधार होता है विवाह! जहां हिन्दू धर्म में विवाह को श्रेष्ठ माना गया है, उसे लेकर कई प्रेम कहानियाँ प्राप्त होती हैं, तो वहीं इन दिनों जो साहित्य लिखा अजा रहा है, उसमें विवाह विरोधी ही कविताएँ दिखाई देती हैं।  दुर्भाव्य की बात यही है कि यह कविताएँ जिन साइट्स पर अपलोड की जाती हैं, वह साहित्य परोसने का दावा करती हैं एवं उनमें वह साहित्य भी उपस्थित होता है जो हिन्दू मूल्यों का विस्तार करता है।  

आम लोग इन पोर्टल्स को जब पुरानी कविताएँ जैसे सूरदास, तुल्सीदास, मीराबाई, जय शंकर प्रसाद आदि पढने के लिए खोजते हैं, तो वह धीरे धीरे उन कविताओं को भी पढने लगते हैं, जो हिन्दू मूल्यों के सर्वथा विपरीत हैं।  परन्तु लोग इन पोर्टल्स को साहित्य का प्रतिनिधि मान लेते हैं एवं इनमे उपस्थित हर कविता ही उन्हें साहित्य का ही भाग प्रतीत होने लगती है।  

परन्तु कई कविताएँ ऐसी हैं, जिन्हें स्त्रीवादी कविता कहा जाता है, और वह स्त्रियों की पूरी तरह से विरोधी होती हैं।  ऐसा इसलिए क्योंकि यह कविताएँ उन्हें विवाह के विरुद्ध भड़काती हैं एवं उस बाजार और सड़क के लिए उपलब्ध करा देती हैं, जहां पर कोई भी उन्हें आकर कुछ भी कर सकता है, जहाँ पर वह सभी के लिए सुलभ हैं! विवाह को एक कैद, एक बंधन एवं परिवार द्वारा थोपी गयी अनिवार्यता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

आज हम नेट पर उपस्थित कुछ कविताओं को देखते हैं, और उनके नाम को जानते हैं, क्योंकि वही नाम हैं जो हमारी बच्चियों को फेमिनिज्म के आदर्श के रूप में पढ़ाए जाते हैं।  उनमें सबसे पहले आता है नाम कमला दस का, जिन्होनें उम्र भर हिन्दू धर्म की बुराई की और अंत में जाकर बुर्के में कैद हो गईं।  उन्होंने प्रेम को लेकर कितना घृणित लिखा है:

जब तक नहीं मिले थे तुम

मैने कविताएँ लिखीं, चित्र बनाए

घूमने गई दोस्तों के साथ

अब

जबकि प्यार करती हूँ मैं तुम्हें

बूढ़ी कुतिया की तरह गुड़ी-मुड़ी-सी पड़ी है

तुम्हारे भीतर मेरी ज़िन्दगी

शान्त…

अर्थात वह यह कहना चाहती हैं कि अकेली स्त्री ही बढ़िया है क्योंकि वह कविता लिख सकती है, चित्र बना सकती है और दोस्तों के साथ जा सकती है! ऐसी कविताएँ लिखने वाली को कविता का महिला स्वर कहा जाता है।  ऐसी ही अभी हाल ही में दिवंगत हुई कमला भसीन को भी ऐसी ही कविता रचने वाली कहा जाता था जो महिलाओं के लिए लिखती थीं। , परन्तु वह कितना महीन एजेंडा चलाती थीं और वह भी बच्चों के दिमाग से खेलती थीं, वह इस कविता से समझा सकता है कि

एक पिता अपनी बेटी से कहता है-

पढ़ना है! पढ़ना है! तुम्हें क्यों पढ़ना है?

पढ़ने को बेटे काफी हैं, तुम्हें क्यों पढ़ना है?

बेटी पिता से कहती है-

जब पूछा ही है तो सुनो मुझे क्यों पढ़ना है

क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है

पढ़ने की मुझे मनाही है सो पढ़ना है

यह कविता कितनी खतरनाक है! यह सामाजिक विमर्श के लिए कितनी घातक कविता है, परन्तु फिर भी कमला भसीन को क्रांतिकारी रचनाकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने बच्चियों को “जेंडर संबंधी विषयों” को लेकर जागरूक किया! क्या यह जागरूकता है या फिर पिता एवं भाई के विरुद्ध भड़काना? यह बेटियों का जीवन बर्बाद कर देना है क्योंकि यदि उसके मन में बचपन से यह भर दिया जाता है कि पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहते तो क्या वह कभी भी अपने जीवन में आने वाले किसी भी पुरुष का आदर कर पाएगी?

ऐसी ही एक कविता का अंश है, जो विवाह निर्धारित करने वाले परिवार के विरुद्ध कितना विषवमन कर रहा है:

“तुम मुझसे वादे करना

जैसे करते हैं घोषणा-पत्रों में

तमाम राजनीतिक दल।

और शादी के लिए बैठेगी सभा

अध्यक्ष कराएगा वोटिंग

बहुमत से फ़ैसले का इंतज़ार

और अंततः अल्पमत में

मर जाएगा हमारा प्यार।“

यह कैसी कविताएँ हैं? यह हमारी बच्चियों को क्या सिखा रही हैं? हमारी बेटियों के समक्ष क्या चित्र प्रस्तुत कर रही हैं?

दुर्भाग्य की बात यही है कि अब ऐसी ही कविताओं को क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि सहज मान लिया जाता है।  ऐसी एक नहीं अनेकों कविताएँ इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं, जो फेमिनिज्म के उस झूठ का दोहराव भर हैं कि शादी से दरअसल “औरत” कैद हो जाती है।  और उन्होंने शादी कि औरतों के लिए गुलामी का रूप बताया।  जैसा बॉब लेविस अपनी पुस्तक द फेमिनिस्ट लाई में लिखते हैं।  वह कई फेमिनिस्ट के हवाले से उस घृणा को दिखाते हैं, जो फेमिनिस्ट विवाह संस्था से करती हैं।  वह लिखते हैं कि

फेमिनिस्ट आन्दोलन के बढ़ते ही जो लक्ष्य फेमिनिस्टों के लिए सबसे बढ़कर हुआ वह था विवाह एवं पारिवारिक मूल्यों के साथ युद्ध।  फेमिनिस्ट लेखिका एवं प्रोफ़ेसर ने तो यह तक कह दिया था कि

एकल परिवार को नष्ट हो जाना चाहिए, चाहे कोई भी माध्यम हो, परिवार का विध्वंस अब एक क्रांतिकारी प्रक्रिया है।

विवियन गोर्निक ने गृहणी होने को ही अवैध पेशा बता दिया था।

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द फेमिनिस्ट लाई

तो पश्चिम के विकृत फेमिनिज्म से आया यह विचार कि परिवार को नष्ट कर देना चाहिए, इन दिनों साहित्य पर हावी है और वह विचार उस पवित्र विचार पर हावी हो रहा है जो गृहस्थाश्रम को सबसे बढ़कर मानता है।  

विमर्श के इस युद्ध में यह समझना होगा कि कैसा साहित्य रचना है क्योंकि साहित्य से उपजा विमर्श ही कहीं न कहीं विमर्श के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।  

(यह स्टोरी हिंदू पोस्ट का है और यहाँ साभार पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है। )

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